पति - पत्नी में झगडे आम बात हैं। मगर क्या आपकी पत्नी कभी ज़हर खा कर मरने की धमकी देती है या नस काट कर मरने की धमकी ? यदि हाँ तो सतर्क हो जाईये। आपकी शादी को यदि सात साल नहीं हुए हैं तो और भी गंभीर बात है। सात वर्ष के भीतर किसी भी विवाहित महिला की मौत दहेज़ हत्या मान ली जाती है। यदि धमकी के लिए ही नस काटी और महिला गलती से मर गयी तब भी आप मुश्किल में हैं। दहेज़ हत्या यानी 304b में ज़मानत मिलना असंभव के समान होता है। न केवल आप बल्कि आपकी माँ और आपकी बहन के लिए जेल में सास - ननद वाले स्पेशल सेल हैं। आप फेसबुक पर भी कई पेज देख्नेगे जस्टिस फॉर यह वो वाले , जब लड़की मर जाती है तो वो ज़्यादा बड़ी विक्टिम बन जाती है। उस समय लड़के के पास किसी तरह की सहानुभूति नहीं होती ना दोस्तों की , ना रिश्तेदारों की , ना मीडिया की , ना कोर्ट की। बात चाहे जो भी रही हो मगर आप समाज की नज़र में दहेज़ के लोभी दरिंदे होते हो , जो इतना क्रूर है कि उसने चंद पैसों के लिए अपनी ही पत्नी को मरने पर मजबूर कर दिया या मार दिया ।
उस आदमी का दर्द/अवसाद समझने की कोशिश करिएगा कभी जिसने अपमी पत्नी खोयी और साथ ही उसे अपराधी भी बना दिया गया। ज़्यादातर ऐसे मामलों में धमकी मिल रही होती है पर आदमी निभाने की कोशिश करता चला जाता है ताकि शादी चलती रहे।
वहीँ दूसरी ओर यदि विवाहित पुरुष ना रहे तो महिला पर कोई आंच नहीं आती। बल्कि वो उसकी पेंशन , बीमा पाने की अधिकारिणी हो जाती है। ऐसे में न्यायपालिका यह नहीं देखती कि इस महिला ने वास्तव में पत्नी होने का कोई धर्म निभाया भी या नहीं। वो तकनीकी रूप से पत्नी है इसलिए उसे सभी अधिकार हैं। जबकि ऐसे मामलो में लड़के की माँ ज़्यादा परेशान होती है मगर साहनुभूति उस जवान विधवा को मिलती है। देश पर शहीद हुए जवानों की भी माँ कम ही दिखती है अवार्ड लेते हुए।
ऐसे में सबसे खतरनाक जगह मेडिएशन सेण्टर होते हैं। यह सेण्टर गिले शिकवे भूलकर पत्नी को वापिस ले जाने की सलाह देते हैं। ऐसी धमकियों वाली पत्नी को रखना मतलब 304b को बुलावा है। जिस परिवार कल्याण समिति को बनाने की सलाह उच्चतम न्यायालय ने दी है वो कतई पुरुषों के हित में नहीं है। जब तक इन कानूनों की समीक्षा नहीं होती या महिला और उसके परिवार वालों को झूठ बोलने के लिए सज़ा नहीं मिलती तब तक पुरुष को किसी तरह की राहत नहीं मिलेगी चाहे जितनी समितियाँ बना लीजिये। #JT
Credit : Jyoti Tiwary
उस आदमी का दर्द/अवसाद समझने की कोशिश करिएगा कभी जिसने अपमी पत्नी खोयी और साथ ही उसे अपराधी भी बना दिया गया। ज़्यादातर ऐसे मामलों में धमकी मिल रही होती है पर आदमी निभाने की कोशिश करता चला जाता है ताकि शादी चलती रहे।
वहीँ दूसरी ओर यदि विवाहित पुरुष ना रहे तो महिला पर कोई आंच नहीं आती। बल्कि वो उसकी पेंशन , बीमा पाने की अधिकारिणी हो जाती है। ऐसे में न्यायपालिका यह नहीं देखती कि इस महिला ने वास्तव में पत्नी होने का कोई धर्म निभाया भी या नहीं। वो तकनीकी रूप से पत्नी है इसलिए उसे सभी अधिकार हैं। जबकि ऐसे मामलो में लड़के की माँ ज़्यादा परेशान होती है मगर साहनुभूति उस जवान विधवा को मिलती है। देश पर शहीद हुए जवानों की भी माँ कम ही दिखती है अवार्ड लेते हुए।
ऐसे में सबसे खतरनाक जगह मेडिएशन सेण्टर होते हैं। यह सेण्टर गिले शिकवे भूलकर पत्नी को वापिस ले जाने की सलाह देते हैं। ऐसी धमकियों वाली पत्नी को रखना मतलब 304b को बुलावा है। जिस परिवार कल्याण समिति को बनाने की सलाह उच्चतम न्यायालय ने दी है वो कतई पुरुषों के हित में नहीं है। जब तक इन कानूनों की समीक्षा नहीं होती या महिला और उसके परिवार वालों को झूठ बोलने के लिए सज़ा नहीं मिलती तब तक पुरुष को किसी तरह की राहत नहीं मिलेगी चाहे जितनी समितियाँ बना लीजिये। #JT
Credit : Jyoti Tiwary