यावत जीवेत सुखं जीवेत
ऋणं कृत्वा घृतं पीवेत।।
भस्मीभूतस्य देहस्य
पुनरागमनम कुतः ।।
ऋणं कृत्वा घृतं पीवेत।।
भस्मीभूतस्य देहस्य
पुनरागमनम कुतः ।।
चार्वाक दर्शन का नाम ही विकास है ।
इस जन्म में जीभ के स्वाद और शरीर के सुख प्राप्त करने के लिए छल क्षद्म झूंठ फरेब कपट आदि से धन एकत्रित करके जीवन की अभिलाषा और प्राप्ति व्यक्ति गत विकास है ।
इस जन्म में जीभ के स्वाद और शरीर के सुख प्राप्त करने के लिए छल क्षद्म झूंठ फरेब कपट आदि से धन एकत्रित करके जीवन की अभिलाषा और प्राप्ति व्यक्ति गत विकास है ।
और प्रकृति का अन्धाधुन्ध दोहन करके लोगों के जीवन को सुखमय बनाने का दिखावा करना सबका विकास है ।
और इसी को समझने के लिए कि इसको किस तरह रोका जाय उसको विश्वविद्यालयों में विदेशी लंगूरों के विचार को आयातित करके डिग्री बाँटना एक नया सिद्धान्त है जिसको #Sustainable_Development कहते हैं।
मानव के चरित्र के विकास से इस आधुनिक विकास के सिद्धांत का कोई लेना देना नही है।
बाजारवाद और उपभोक्तावाद के नए और विस्तृत चेहरे को ही सरकारी भाषा में विकास कहते हैं ।
Credits : Dr Tribhuvan Singh
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