सन १९१३ में चीन के एक ज़मींदार परिवार में जन्मे शी चोंगशुन चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापकों में से एक थे। माओ के करीबियों में से एक रहे चोंगशुन चीन के उपप्रधानमंत्री भी रहे। लेकिन वामपंथ और तानाशाही पर्यायवाची शब्द हैं। १९६२ में पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में माओ ने चोंगशुन को पद से हटाकर जेल में डाल दिया गया। उनका परिवार अब तक एक शाही ज़िन्दगी बिता रहा था, लेकिन अचानक परिस्थितियां बदल गई थीं।
चोंगशुन के १५ वर्षीय बेटे को सज़ा के तौर पर एक देहाती इलाके में रहने के लिए भेज दिया गया, जहां वह ७ वर्षों तक रहा। लेकिन उस चालाक लड़के ने कम्युनिस्ट पार्टी के खिलाफ जाने की बजाय पार्टी से जुड़ने का फैसला किया। उसने कई बार पार्टी में शामिल होने की कोशिश की, लेकिन पिता के नाम के कारण उसे बार-बार पार्टी से खारिज किया गया। अंततः १९७४ में उसे पार्टी में घुसने में सफलता मिली और उसे हुबेई प्रांत में पार्टी का स्थानीय सचिव बनाया गया। धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए वह व्यक्ति शंघाई में पार्टी मुखिया बना, फिर पोलित ब्यूरो की स्थाई समिति का सदस्य, कम्युनिस्ट पार्टी का महासचिव और फिर चीन का राष्ट्रपति बन गया!
पिछले हफ्ते चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के अधिवेशन में उसे पुनः ५ वर्षों के लिए राष्ट्रपति चुना गया है। इतना ही नहीं, जिस माओ ने उसके पिता को पद से हटाकर जेल भेज दिया था, उसी माओ की बराबरी का महान नेता बताकर अब उसका नाम पार्टी के संविधान में भी शामिल किया गया है। जी हां, मैं बात कर रहा हूं चीन के वर्तमान राष्ट्रपति शी जिनपिंग की, जिनके विचारों को अब पार्टी के संविधान में जोड़ा गया है। इसका अर्थ ये है कि चीन के स्कूलों, कॉलेजों के छात्रों समेत करोड़ों लोग अब शी जिनपिंग की विचारधारा को भी पढ़ेंगे।
चीन के इतिहास में अब तक इतना महत्व खुद माओ त्से तुंग के अलावा केवल एक पूर्व राष्ट्रपति को मिला है, लेकिन उनका नाम मृत्यु के बाद ही संविधान में जोड़ा गया था। शी जिनपिंग का नाम पद पर रहते हुए ही शामिल किया गया है। मुझे लगता है कि यह चीन की सत्ता पर जिनपिंग की मज़बूत पकड़ का संकेत भी है और इस बात का भी संकेत हो सकता है कि जब तक स्वास्थ्य ठीक रहेगा, तब तक जिनपिंग अब इस पद पर बने रहेंगे। वास्तव में इसे चीनी राजनीति में जिनपिंग युग कहा जा सकता है।
इस जिनपिंग युग का मतलब क्या है? चीन के भविष्य पर और पूरी दुनिया पर भी इसका क्या प्रभाव हो सकता है? मुझे नहीं पता कि राहुल गांधी के बयान और हार्दिक पटेल की नौटंकी जैसे फालतू मुद्दों को २४ घंटे दिखाने वाले भारतीय मीडिया चैनलों ने चीन की इस महत्वपूर्ण घटना के बारे में कितनी चर्चा की है या कितना विश्लेषण किया है, लेकिन मुझे लगता है कि अगले पांच वर्षों में पूरी दुनिया पर इसका प्रभाव दिख सकता है। विशेष रूप से पाकिस्तान, अफ्रीका और इधर दक्षिण चीन सागर के कारण पूरे पूर्वी एशिया पर निश्चित रूप से इसका प्रभाव दिखेगा।
हिमालय से लेकर अरब सागर तक पूरे पाकिस्तान से होते हुए ग्वादर बंदरगाह तक जाने वाले चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे का प्रभाव पाकिस्तान में अभी से दिखना शुरू भी हो चुका है। इस गलियारे के बहाने पाकिस्तान में चीन का दखल लगातार बढ़ रहा है। चीनी माल से पाकिस्तान के बाज़ार भर रहे हैं और पाकिस्तान से चीन को होने वाला निर्यात लगातार घट रहा है। ग्वादर बंदरगाह भी शायद इस साल के अंत तक शुरू हो जाएगा और अगले पांच वर्षों में संभवतः यह विश्व के सबसे व्यस्त बंदरगाहों में से एक बन चुका होगा। चीन ने एशिया, यूरोप और अफ्रीका तक सड़क, रेल और समुद्री मार्ग के द्वारा पहुंचने के लिए 'बेल्ट एंड रोड' परियोजना शुरू की है, जो जिनपिंग का सबसे महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है। इस पर चीन खरबों डॉलर का निवेश कर रहा है और सीपेक (चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा) इसका एक अति-महत्वपूर्ण चरण है। इसके बारे में हमें कितनी जानकारी है? अफ्रीकी देशों में चीन के भारी निवेश के बारे में हम कितना जानते हैं? बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट के बारे में कितने लोगों को मालूम है? दक्षिण चीन सागर के झमेलों के बारे में भारत के कितने लोगों ने सुना है? उत्तर कोरिया पर हमारा कितना ध्यान है? फिलीपींस में आइसिस और सेना के बीच कई महीनों तक चले संघर्ष के बारे में कितने लोगों ने सुना है? जापान में शिंजो आबे की जीत के परिणामों की कोई चर्चा तक भारत में हुई? मध्यपूर्व से आइसिस खत्म हो रहा है और अब संभवतः संघर्ष का केंद्र पूर्वी एशिया बनेगा, इस पर हमारा कितना ध्यान है?
भारत के मीडिया चैनलों को जब बेकार के छोटे-छोटे मुद्दों पर घंटों तक बहस करते हुए देखता हूं, लेकिन वास्तविक महत्व वाले मुद्दों की कहीं चर्चा तक नहीं दिखती, तो मुझे वाकई भारत के भविष्य के बारे में सोचकर चिंता होती है। उससे भी ज्यादा चिंता सोशल मीडिया पर यह देखकर होती है कि पढ़े लिखे लोग भी चीन के मामले में केवल इस बहस तक सीमित हैं कि दीवाली में चीनी झालर खरीदें या न खरीदें, चीनी सामानों का बहिष्कार करें या न करें और सरकार को चीनी सामानों पर प्रतिबंध लगाना चाहिए या नहीं लगाना चाहिए! क्या हमारी चर्चाओं और बहस का स्तर बस इतना ही रह गया है?
विश्व की राजनीति और विभिन्न देशों के क्रियाकलापों का अध्ययन करना और कहां क्या हो रहा है, इसके बारे में यथासंभव जानकारी पढ़ते रहना हमेशा से ही मेरी रुचि का विषय रहा है। चीन विश्व मंच पर एक महत्वपूर्ण देश है और अब मैं चीन के बारे में थोड़ा ज्यादा ध्यान देकर पढ़ना चाहता हूं। उससे भी आगे जाकर मैं सरल शब्दों में वह जानकारी दूसरों तक भी पहुंचाना चाहता हूं। मुझे नहीं मालूम कि ऐसे विषयों के बारे में पढ़ने में कितने लोगों की रुचि होगी। यह भी नहीं मालूम कि मैं खुद इस विषय के बारे में पढ़ने या लिखने के लिए कितना समय निकाल पाऊंगा, लेकिन जब भी, जैसा भी, जितना भी संभव होगा, मैं लिखूंगा और अपने ब्लॉग के माध्यम से आप तक भी पहुंचाता रहूंगा। मैं लाइक गिनने के लिए पोस्ट नहीं लिखता, इसलिए आप इस विषय पर मेरी कोई पोस्ट पढ़ें या न पढ़ें, वह आपकी इच्छा और आपका अधिकार है। लेकिन जब जितना संभव होगा, मैं अब इस विषय पर भी लिखूंगा। अगर आपकी भी इस विषय में रुचि हो, तो मुझे अवश्य बताइये और अगर आपके पास इस विषय के बारे में कोई जानकारी हो, तो वह मुझे भी भेजिये। धन्यवाद!